भारत, जो विविधता और धार्मिक सहिष्णुता के लिए जाना जाता है, आज धर्म के नाम पर विभाजित होता दिख रहा है। विभिन्न धर्मों के अनुयायी अपने-अपने धर्म को सर्वोच्च मानते हुए अपने हित साधने में लगे हुए हैं। यह प्रवृत्ति समाज के ताने-बाने को कमजोर कर रही है और धार्मिकता के मूल सिद्धांतों से भटकाव का प्रतीक बन रही है।
धर्म के नाम पर स्वार्थ साधना: एक गंभीर समस्या
धर्म का उद्देश्य मानवता को सही मार्ग दिखाना और लोगों को नैतिकता की ओर प्रेरित करना है। परंतु आज धर्म का उपयोग समाज को जोड़ने के बजाय विभाजित करने के लिए किया जा रहा है। धार्मिक नेता और राजनेता धर्म के नाम पर लोगों की भावनाओं के साथ खेलते हैं, उन्हें उकसाते हैं और उनका उपयोग अपने राजनीतिक और सामाजिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए करते हैं। इसका परिणाम धार्मिक उन्माद, हिंसा, और सामाजिक असमानता के रूप में सामने आता है।
राजनीतिक लाभ का खेल
भारत में धर्म को अक्सर राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया जाता है। चुनावी रैलियों में धर्म और जाति के नाम पर वोट मांगना एक आम बात हो गई है। राजनीतिक दल अपने-अपने धर्म के अनुयायियों को साथ लेकर सत्ता में बने रहने की कोशिश करते हैं। इसके लिए वे धर्म की आड़ में समाज को बांटते हैं, धार्मिक उन्माद भड़काते हैं, और समुदायों के बीच नफरत पैदा करते हैं। ये राजनीतिक खेल धर्म के नाम पर समाज को बांटते हैं और लोगों के बीच सद्भावना को समाप्त करते हैं।
धार्मिक कट्टरता और उग्रता
धार्मिक कट्टरता का बढ़ना भी एक बड़ी समस्या है। धार्मिक संगठनों द्वारा अपने अनुयायियों को दूसरे धर्मों के प्रति असहिष्णु बनाना, उन्हें हिंसा के रास्ते पर धकेलना, और अपनी धार्मिक श्रेष्ठता का प्रचार करना आम हो गया है। इसका परिणाम सांप्रदायिक दंगे, मंदिर-मस्जिद विवाद, और धार्मिक स्थलों पर हमलों के रूप में देखने को मिलता है। ये घटनाएं न केवल समाज में तनाव बढ़ाती हैं, बल्कि विकास और शांति के रास्ते में भी बाधा उत्पन्न करती हैं।
धर्म का व्यवसायीकरण
आज धर्म एक बड़े व्यवसाय का रूप ले चुका है। धार्मिक आयोजनों, तीर्थ स्थलों, और धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से बड़ी मात्रा में धन अर्जित किया जा रहा है। धार्मिक नेता अपने अनुयायियों की भावनाओं का दोहन कर धन और शक्ति का संचय कर रहे हैं। यह व्यवसायीकरण धर्म के वास्तविक उद्देश्यों से भटकाव का कारण बनता है और लोगों को धार्मिक आस्था के बजाय आर्थिक और सामाजिक लाभों की ओर प्रेरित करता है।
समाज पर प्रभाव
धर्म के नाम पर स्वार्थ साधने की प्रवृत्ति समाज के हर वर्ग को प्रभावित कर रही है। लोग अपने धार्मिक प्रतीकों, परंपराओं, और मान्यताओं को बचाने के नाम पर हिंसक हो रहे हैं। इसके अलावा, धार्मिक असहिष्णुता के कारण समाज में भय, अविश्वास, और अलगाव की भावना बढ़ रही है। यह स्थिति युवाओं को भी प्रभावित करती है, जो धर्म के नाम पर कट्टरता और हिंसा के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित होते हैं।
समाधान की दिशा में कदम
समाज को इस समस्या से उबारने के लिए आवश्यक है कि लोग धर्म के वास्तविक उद्देश्यों को समझें। धर्म का उपयोग मानवता की सेवा, शांति की स्थापना, और नैतिक मूल्यों को सशक्त करने के लिए होना चाहिए, न कि स्वार्थ सिद्धि के लिए। धार्मिक नेताओं और राजनेताओं को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और समाज को जोड़ने में अपनी भूमिका निभानी चाहिए।
धर्म व्यक्तिगत आस्था का विषय है और इसे समाज को जोड़ने के माध्यम के रूप में देखा जाना चाहिए। धर्म के नाम पर स्वार्थ साधना न केवल धर्म का अपमान है, बल्कि यह समाज और देश के विकास के लिए भी बाधक है। इसलिए, यह आवश्यक है कि हम सभी धर्म के नाम पर हो रहे स्वार्थ साधन को पहचानें और इसे समाप्त करने के लिए सामूहिक प्रयास करें।